
ॐ एक निराकार स्वरुप
Aum,
Aum ॐ एक निराकार स्वरुप है , ॐ ही आदि है ॐ ही अंत है , ॐ से बड़ा कोई नहीं, ॐ से छोटा कोई नहीं, ॐ ही सूक्ष्म है , ॐ ही विशाल है , ॐ की ही माया है और ॐ की ही काया है , ॐ ही शिव है ॐ ही शक्ति है ! ॐ की महामाया से कोई अछूता नहीं !
अक्सर इस प्रकृति के सबसे श्रेष्ठ जीव प्राणी , ‘मनुष्य’ के अंतर्मन में ये विचार आता है कि ॐ का उद्गम कहाँ से हुआ ?…
तो मनुष्य की बुद्धि विकास के साथ और मनुष्य के जनम से मरण तक के सफर में सिर्फ ॐ ही है ! बच्चा सृष्टि में आते ही बोल नहीं सकता, अपितु उसके रुदन में भी ॐ ही सुनाई पड़ता है , देह त्याग करते समय भी कोई अक्षर इतनी सुलभता से कंठ से नहीं निकल पाता सिर्फ ओउम ही श्वास के साथ बहार हो जाता है !
ॐ का गुणगान सदियों से भारतवर्ष में किया जाता रहा है , और ना जाने कितनी ही पुण्य आत्माओं ने अपने भीतर मन में ॐ जाप कर निराकार परमात्मा का साक्षात्कार किया है ! हम सबमे ही ॐ है और हम सब ही ॐ हैं और यह एक सत्य है !
भारतीय सभ्यता में ॐ ही योग है ॐ के स्वर को जपने मात्र से मनुष्य उस शक्ति का सञ्चालन कर सकता है जिसका अनुभव ॐ से प्राप्त किया जा सकता !
ॐ स्वर मूलतः तीन अक्षरों अ , उ और म के योग से हुआ है पहला स्वर नाभि चक्र को जागृत करता है ! दूसरा हृदय चक्र को जागृत करता है और तीसरा आज्ञा चक्र को जागृत करता है और धीरे धीरे सम्पूर्ण मानव शरीर में जागरण होता है !