पञ्च भीष्म (पंज भीखू , भीष्म पंचक)क्यों पूजते हैं इन पांच दिनों को महाभारत काल से ?
पञ्च भीष्म व्रत ,महाभारत काल से चली आ रही प्रथा जिसका हम आज भी अनुसरण करते चले आ रहे है !
ऐसा क्या हुआ था पांच दिनों में जो आज तक हम उसे याद करते हैं और पूजते हैं ! कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होकर यह व्रत पूर्णिमा तक चलता है। आदि काल से कार्तिक स्नान को बहुत महत्त्व दिया गया है।
आइये जानते हैं क्या हुआ था असल में महाभारत के युद्ध के अंतिम पड़ाव में जब भीष्म पितामह मृत्युशय्या पर बाणों से बिंधे हुए लेटे थे तो उन्होंने श्रीकृष्ण से अपनी इस घोर पीड़ा का कारण पुछा तो प्रभु कृष्ण ने बताया पितामह आपा अपने पिछले जन्म जब एक राजकुमार थे तब आप एक दिन शिकार पर निकले थे। उस वक्त एक छोटा टिड्डा एक वृक्ष से नीचे गिरकर आपके घोड़े पर बैठा था।
और आपने अपने बाण से उठाकर उसे पीछे फेंक दिया, उस समय वह बेरी के पेड़ पर जाकर गिरा और बेरी के कांटे उसकी पीठ में धंस गए। वह जितना निकलने की कोशिश करता उतना ही कांटे उसकी पीठ में चुभ जाते और इस प्रकार जीव अठारह दिन जीवित रहा और यही ईश्वर से प्रार्थना करता रहा, ‘हे युवराज! जिस तरह से मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूं, ठीक इसी प्रकार तुम भी होना।’
वस्तुतः ये दिन द्वापर युग के उस काल से चले आ रहे ज्ञान स्त्रोत को स्मरण करने के लिए पूजे जाते हैं ! ऐसा मन जाता है कि जब श्री कृष्ण के आग्रह पर देवव्रत ,भीष्म पितामाह ने कृष्ण सहित पाण्डवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया। और ज्ञान देने का यह क्रम एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि यानि पांच दिनों तक चलता रहा। भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि “आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गए हैं। इन पांच दिनों को आदि काल में ‘पञ्च भीष्म ‘ के नाम से जाना जाएगा!